Monday, July 31, 2017

आलंब

आलंब का आशय वह स्थिति परिस्थिति , स्थूल या सूक्ष्म बिम्ब या बिन्दु जहाँ  से हम देखते हैं , गणना करते हैं. pivot point of reference.

योग और ध्यान में यह सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है.
बिन्दु को परिभाषा के अनुसार ही समझें अर्थात बिन्दु में आकार नहीं होता. यानि जिसमें लम्बाई , चौड़ाई और मोटाई नहीं हो वह बिन्दु है यानि इसमें तीनों विमाएँ नहीं होतीं.

हमेशा हम जागते और सोते हुए भी एक बिन्दु पकड़ कर चलते हैं. जहाँ हम अपने आप को स्थित मानते हैं. याने वह बिम्ब जहाँ हम खुद के होने का अपना अस्तित्व  मानते हैं.

मोटे तौर पर हम हमेशा खुद को एक बिन्दु पर खडे होकर दुनिया देखते हैं .

यह हमारी पूरी सृष्टि की  सबसे महत्वपूर्ण धारणा है. 

दश दिशा

पूर्व दिशा इन्द्र की होती है. इन्हे देवताओं का राजा माना जाता है. जब हम शरीर में देखते हैं. तो समस्त इन्द्रियो से प्रकट मानते हैं. इन्द्रियों को साधना ही इस देवता की शरीरस्थ प्रकट साधना है.
विकारों के गर्भ में विचार और विचारों के गर्भ में इच्छाऐं होती हैं ये सभी केवल इन्द्रियों की तुष्टि के लिए स्वरुप पाते हैं.
विचारों के पहले इच्छा और इन्द्रि होती है.
इसका अर्थ ये नहीं कि हम इच्छा और इन्द्रि दोनो को त्याग दें. साधना का अर्थ अभ्यास से समझना ऐसा ज्यादा होता है. इन्द्रियाँ एक tool है जिससे हम अनुभव करते हैं. जब हम इन पर ध्यान करते है. focus करते हैं, तब अपने आप को सृष्टि को विराट को समझते है, अनुभव पाते है.

चँद्र सोम कुबेर ये सभी एक ही दिशा को उद्बोधित करते हैं- उत्तर . उत्तर इस तरह से प्राप्तियों की दिशा हुई. कुबेर को धन का देवता माना जाता है. सम्पतियों का देवता माना जाता है. सोम विषय का देवता है. चँद्र भाग्य का देवता है. समय का निर्धारक लक्षण है. इन सभी की दिशा उत्तर है. जिसे प्राप्ति की दिशा कहा जाता है. सकर्मक और अकर्मक पुण्य इसी दिशा से लौट कर मिलते हैं. जब हम पूर्व की ओर मुख करते हैं तो यह वाम पक्ष होता है. कहते हैं बाँए हाथ में यही भाग्य लिखा होता है.

वरूण 
यम
नैऋति समाप्ति की दिशा है यह सतत सृष्टि का सन्तुलन बनाने का देवता है । जो भी आप अपने जीवन में नहीं चाहते उसे इस दिशा में रख कर देखिए सतत रखिए तब वह समाप्त होने लगेगा। 

वायु
ईशान यह ज्ञान की दिशा है , ईश्वर का सापेक्ष यहां से मिलेगा। 
अग्नि

 

वाङग्मय के चार तल होते हैं

वाङग्मय के चार तल होते हैं. इन्हें वाकपद कहते हैं.

प्रथम तल वैखरी है. बाहरी विश्व से संवाद . आम भाषा में जोर से बोलना. इस संवाद को दूसरे सुन सकते हैं.

दूसरा तल मध्यमा है.  स्वयं से संवाद . जिसे हम सोचना कहते हैं.  

तीसरा तल पश्यन्ति है. यह वह तल है जिसे हम मन का दृश्य-पटल भी कह सकते हैं. जिसमें संवाद नहीं होता दर्शन होता है. इसका आधा भाग स्थूल और आधा भाग सूक्ष्म होता है.


चौथा तल परा है. व्यष्टि और समष्टि के बीच का तल परा है. बिना साधना के इस तल का अनुभव नहीं होता , इसलिए इसका नाम परा है. ये वह बुद्ध की मुद्रा है जिसमें हम हमेशा उन्हे बैठे हुए देखते हैं. अर्ध-निमेष आँखें . तो मैं विश्व को होते हुए देखता हुँ लेकिन मैं इसमें नहीं हुँ. और मैं अन्तर्जग को भी देखता हुँ. लेकिन मैं इसमें भी नहीं हुँ. शिव-पार्वती की एक साथ आमोद मुद्रा की तस्वीर में भी पार्वती इसी अर्ध-निमेष को इंगित करती हैं.

ये पाश्चात्य विज्ञान के विभाजन  Conscious , sub-conscious and unconscious से बिल्कुल अलग दृष्टि है. क्योंकि इस दृष्टि से ही आपको आलंब को व्यवस्था करने का धरातल मिलता है . एक प्रोग्रेशन है , एक रास्ता है, क्रम है जिसमें एक आलंब की स्थिति स्पष्ट है कि मैं कहाँ हुँ.  तो आपको पता चलता है कि कहाँ से शुरु करना है.



योग गणपति अथर्वशीर्ष से.


गणादिं पूर्वं उच्च आर्य वर्णादिं तदनंतरं.

अर्थात गण पहले होते हैं उच्च आर्य वर्ण यानि जो अक्षर आर्य वर्णमाला के होते हैं जैसे ककहरा देवनागरी , इसके बाद होते हैं. यानि जब हम कोई विचार करते हैं तब वह स्थूल रुप लेने के पहले गण रुप में होता है.

वर्णों की तरह ही गणों को भी 28 गणों में भाजित किया जा सकता है.

याने जब हम सोचते हैं गुजराती मराठी, हिन्दी अंग्रेज़ी, फ़्राँसीसी इत्यादि में , इससे पहले विचार गणों के रुप में होता है. रोटी बेलने के पहले आटे की लोई की तरह. तो thoughts शुरुआत नहीं होते , गण शुरुआत होते हैं. इसलिए गणेश प्रथमेश्वर हैं. किसी भी संकल्प से पूर्व इनकी साधना का विधान किया गया है.


कई अनुवादों में उच्च आर्य वर्ण को जाति ब्राह्मण इत्यादि से 

वर्णित किया जाता है , जो पृथक है. क्योंकि जब वर्ण नाद मन्त्र

 स्वर के संदर्भ में है तब इसकी प्रतीचि मनुष्य जाति से करना 

विषयान्तर होगा.  

Wednesday, July 26, 2017

योग ईश्वर के साथ तादात्म्य की विधी है

योग ईश्वर के साथ तादात्म्य की विधी है
योग का अर्थ है जुड़ना , जोड़ , इसे अलग-अलग ऋषियों ने अलग अपने तरीके से समझा , बताया .
ये परिकल्पना वैदिक काल से चली आ रही है.
वेद व्यास जी ने महाभारत में कृष्ण मुख से योग समझाया.
पातञ्जली जी ने अपना योग बताया.
शिव संहिता में शिव अपने मुख से पार्वती जी को समझाते है.
बुद्ध के वज्रयान का अलग योग है. 

Tuesday, July 25, 2017

चक्षौः सूर्यौः अजायतः

आँख ( या आँखों) से सूर्य ( या कई सूर्य) जनता है( जनते हैं)ः. पुरुष सूक्त
आँख का सम्बन्ध सूर्य से होता है. 
आठ मिनिट का ध्यान किया जाता है सूर्योदय से ठीक पहले. 
आँखों को धो लेना चाहिए . पूर्व दिशा में निमेष खुली आँखें रखकर दृष्टि क्षितिज पर होना चाहिेए. अनुभव करेंगे कि जैसे हम सोकर उठते हैं , वैसे ही कुछ समय सृष्टि भी लगाती है. दृष्टि क्षितिज पर रहती है, पर ध्यान सम्पूर्ण सृष्टि के जागरण पर होता है. 
सूर्य के रौद्र होने (किरणें सीधी पडने लगने पर) के ठीक पहले इसे समाप्त कर दिया जाता है. 

ईश्वर से तादात्म्य का सबसे जाग्रत उपाय है प्रकृति से तादात्म्य . 
सूर्य दृष्टिमान प्रकृति का सबसे शक्तिशाली बिम्ब है. 
इसलिए सर्वप्रथम इसे ही आराधना चाहिए. 


एक माल ऐसी भी जपें के

साँस लें तो राम छोड़ें तो हनुमान