गणादिं पूर्वं
उच्च आर्य वर्णादिं तदनंतरं.
अर्थात गण पहले
होते हैं उच्च आर्य वर्ण यानि जो अक्षर आर्य वर्णमाला के होते हैं जैसे ककहरा
देवनागरी , इसके बाद होते हैं. यानि जब हम कोई विचार करते हैं तब वह स्थूल रुप लेने
के पहले गण रुप में होता है.
वर्णों की तरह
ही गणों को भी 28 गणों में भाजित किया जा सकता है.
याने जब हम
सोचते हैं गुजराती मराठी, हिन्दी अंग्रेज़ी, फ़्राँसीसी इत्यादि में , इससे पहले
विचार गणों के रुप में होता है. रोटी बेलने के पहले आटे की लोई की तरह. तो thoughts शुरुआत नहीं होते , गण शुरुआत होते हैं. इसलिए गणेश प्रथमेश्वर हैं. किसी भी
संकल्प से पूर्व इनकी साधना का विधान किया गया है.
कई अनुवादों
में उच्च आर्य वर्ण को जाति ब्राह्मण इत्यादि से
वर्णित किया जाता है , जो पृथक
है. क्योंकि जब वर्ण नाद मन्त्र
स्वर के संदर्भ में है तब इसकी प्रतीचि मनुष्य
जाति से करना
विषयान्तर होगा.
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