Monday, August 14, 2023

Friday, August 11, 2023

दश महाविद्या

काली 
तारा
 षोडशी 
भुवनेश्वरी 
भैरवी 
छिन्नमस्ता 
धूमावती 

बगलामुखी 
मातंगी
 कमला लक्ष्मी का स्वरूप है 
ये सभी विद्याएं सृष्टि के गूढ़ से गूढ़ रहस्यों को उजागर करती हैं। इन सभी में गुरू का होना आवश्यक इसलिए माना जाता है क्योंकि ये सभी ऐसे अनुभव लेकर आती हैं जो सामान्य से बिल्कुल अलग होते हैं और आपको पता नहीं होता कि इन सबसे कैसे प्रतिसाद किया जाए । 
जैसे एक अबोध बालक को नहीं पता होता कि आग को छूने के नुकसान या तो वह चटखे से पता चलता है या मां से । एक बार पता चलने पर आपको पता है कि कब कैसे करना है। 
पूरे ब्रह्मांड का परिसंचलन इनसे होता है । ये तन्त्र हैं । ये तत्व हैं। 
काली संहार भैरवी सतत संहार कमला नवीन सृष्टि 
हम केवल कल्पना करतें हैं कि हम सब कुछ करते हैं पर सब कुछ किसी तन्त्र से संचालित ही है। जैसे मानव मानव को ही जन सकता है। श्वास की गति भी हमारे नियन्त्रण में नहीं है। पर तन्त्र तो है। यही तन्त्र है। 

ऐसा कहा जाता है कि 64 तन्त्रों से दुनिया चलती है । प्रत्येक महाविद्या इन्ही में से कुछ तन्त्रों का समूह हैं। ये सभी परा हैं यानि केवल इन्द्रियों से ज्ञाप्त नहीं हैं। इन्द्रियों के शोषित से कारिका देते हैं पर ये तिनके के सहारे जितने ही होते हैं। 
जैसे सूर्य का हमें भान होता है प्रकाश का भान होता है पर यह पर क्यों और क्या क्या प्रभाव शरीर पर डालते हैं हमें नहीं पता । 




योग में मुद्रा

 योगासनों में मुद्राओं का बहुत महत्व है। 

विशेष बन्ध के साथ किए जाने पर ये विशेष लाभ देते हैं। विशेष अंगों को आसनों से स्थिर करके विशेष  प्राणायाम कर विशेष बन्ध लगाने के कई फायदे होते हैं। 

उदाहरण 

उत्तानपादासन के साथ यदि कुम्भक किया जाए और अश्व चालिनी मुद्रा भी की जाए, तो यह पेट की सभी समस्याओं में लाभकारी हो जाता है। 



before yoga asana

 few things first

these are not like other exercises, drills, calisthenics. so you need to work out the exact methods and instructions required for sidhdhi of an asana.

yogasana work on the internal vital organs , nadi and nervous system so do not use them like other body exercises.

body requires some time (which is different for different persons) to assimilations.

asana sidhdhi require at least 4 to 6 months. so do not change the asana frequently to mature the benefits that an asana can give.

decide what are your needs from asana 

if you are a sitting for 8 hours on one place personality then start from sarpasana and dhanurasana.

you are moving on a two wheeler all the working hours then start with shavasana and sukhasana.


stretch the body only 75% of your capacity . everyday it will increase the stretch inch by inch . 

so decide your goals first then you can choose asana.

since the asana work on the nadis , it is necessary to get the primary knowledge of the pranayama. if you do follow the instructions on pranayama on each asana the fruitful results are way greater than without the pranayama. 

any food intake should be avoided for at least 3 hours this side and that side of the asana. 





Tuesday, July 26, 2022

शिवरात्रि

शिव का पार्थिव इसी दिन दिखता है शिव शक्ति एक साथ । हम पार्थिवों को शिव तत्व के अनुभव का यही दिन है ।क्यों कि हम इन्द्रिय जनित को ही समझ पाते हैं ।

Saturday, February 12, 2022

काल

काल के मुख्यतः दो अर्थ है 
समय और मृत्यु 
समय में हम एकरेखीय हैं एकमुखी हैं सद्योजात से परे हम कुछ भी नहीं कर सकते । 
मृत्यु को भी इसी काल के पर्याय मे देखते हैं 
भू भूत भभूत और भव क्या है 
भुव और स्वः क्या है?  
हम काल को पञ्च इन्द्रियों से कैसे समझते हैं । 
जब सबकुछ अपनी अपनी गति व वेग से बदलता है तब हम इसे समझ पाते हैं  यानी कि किसी बन्द स्थान में जहां परिवर्तन न दिखे तो समय की भावना भ्रमित हो सकती है अन्तर्याग इसी के अन्तर्गत प्रक्रिया है जो बाहर से किसी भी समय की भावना को रोक देता है सापेक्षता को समाप्त कर देता है ।
इसी के संधान के लिए अलग अलग इंद्रियों को रोका जाकर सीखा जाता है कि एक इंद्री समय को कैसे समझती है और कैसे व्यक्त करती है 
समय को समझने के लिए पलक झपकने पर ध्यान देना चाहिए इसे निमेष कहा जाता है ।
इड़ा गान्धारी कूर्म । पिंगला यशस्विनी नाग।
 

Monday, December 27, 2021

न्यास क्या क्यों और कैसे

 हम किसी भी समय एक आलंब  के सहारे होते हैं प्रत्यक्षण यह आलंब हमें पता नहीं होता इसको सुनिश्चित करने की एक विधि है जिसे न्यास कहते हैं ।
हम अपने आप को अपने शरीर में एक बिंदु पर रखते हैं या समझिए कि शरीर में स्वयं को एक खास जगह पाते और मानते हैं । यहीं से हम पूरी सृष्टि को देखते हैं।  यही आलम्ब हैं। 
न्यास की विधियां शरीर या शरीर के बाहर विशेष स्थानों पर आलम्ब की सृष्टि करने और इसी का अभ्यास करने का अवसर देती हैं। 

न्यास हमें रुद्र , विष्णु, ब्रह्म ( योग सूत्र ) ग्रन्थियों से जगत को देखने का अभ्यास कराता है। हमारे स्वयं के विश्व मे्ं तीन अलग -अलग जगत होते हैं। एक स्थूल शरीर की सृष्टि एक भावनाओं यानि  इन्द्रिय जनित सृष्टि और एक शुद्ध ज्ञान की सृष्टि ( ईश्वर सत्ता का ज्ञान)

विभिन्न न्यासों को करने के पहले प्रत्येक को कुछ रोचक अभ्यास अवश्य करना चाहिए। 

पहला अभ्यास शरीर में ढूंढिेए कि मैं क्या हूं और कहां हुं। क्या मैं शरीर ही बस हुं , क्या मन से मन का सम्वाद कल रहा है वो हुं या या स्वचलित यंत्र । कुछ दिनों के अभ्यास से आपको खुद के बारे में नई जानकारियां मिलेंगी। 

दूसरा अभ्यास  पता किया जाए कि हम कब दांई आंख से ( फोकस) देखते हैं कब वाम अक्षि से इसी तरह नाक , कान आदि
कुछ दिनों के अभ्यास से पता चलेगा कि इसमें एक विशेष क्रम है। जैसे सूर्य का एक चलन है दक्षिणायण उत्तरायण पूर्व पश्चिम आदि एक क्रम है चन्द्र का एक विशेष क्रम है वैसे इन का भी क्रम है । इसे जानने से उसी शरीर में नई सृष्टि दिखेगी। ये दृष्टि विकसित होने से ही न्यास के फायदे हैं और आपको पता रहेगा कि आप क्या प्रयोग कर रहे हैं और क्यों।

तीसरा अभ्यास हमारे शरीर में गति , ऊर्जा तथा विचारों का मूल क्या और कहां है। इनका केंद्र बिन्दु एक है या कई हैं किसका कहां है। यह अभ्यास आपको एक नया दृष्टिकोण देगा।  शरीर और मन को साधना सरल करेगा। 


चौथा अभ्यास  पता कीजिए कि शरीर का सन्तुलन कैसा है एक पैर पर कब तक खड़े रह सकते हैं , क्या पैरों की तरह हाथों पर खड़े रह सकते हैं , क्या सिर के बल खड़े रह सकते हैं इत्यादि  कुछ भी जो आपको सन्तुलन का संघर्ष पैदा करे, तब यह देखें कि क्या अब भी आलम्ब वही है यदि बदला है तो क्या और क्यों । 

अब न्यास की तरफ बढते हैं 
शरीर के अंगों की गिनती कीजिए  एक ही क्म से कई बार । करते समय उस अंग पर ध्यान लगाईए उस के हालचाल लीजिए क्या दर्द है कोई नाड़ी सुनाई दे रही है क्या कोई कमजोरी है इत्यादि । छोटेि मोटेि व्याधियां केवल इतना करते रहने से ही ठीक हो जाती हैं। कुछ एक बार में ही ठीक हो जाएंगी कुछ थोड़ा समय लेंगी। 

 बस ध्यान देने से। 

 और प्रयोग करना है तो शरीर के अंग को पूर्ण शिथिल होने का आदेश दीजिए जब तक आप बाकी शरीर से घूम कर नहीं आते। 

अगला अभ्यास  हमारे कई अंग जो़ड़े से हैं जैसे बायां हाथ दायां हाथ , पैर, आंखें , कान इत्यादि पहले दांया फिर बांया फिर अगला जोड़ा  क्रिस क्रास । यह अभ्यास कई विकृतियों को ठीक करता है जो शरीर की प्रकृति से पैदा होती हैं। जैसे हम दांए या बांए  हाथ से ही लिखते हैं , एक तरफ से चबाते हैं बांई करवट ज्यादा सोते हैं इत्यादि, यह सभी का व्यक्तिगत अलग होता है ।   यह अभ्म्यास साम्य लाता है, सन्तुलन लाता है और कई विकारों को ठीक करता है। 


इन अभ्यासों को कुछ दिनों तक करने के बाद आपको पूर्वाभास हो जायगा कि न्यास क्यों 

अब कैसे पर आते हैं  सामान्य न्यास अनेक प्रकार से विभाजित किए जा सकते  हैं 
 अन्तर्जगत  तथा  बहिर्जगत 
अन्तर्जगत  यानि शरीर में जैसे कर न्यास , षडंग न्यास रुद्र न्यास 
बहिर्जगत  यानि सृष्टि में जैसे तत्व न्यास , षोढ़ा न्यास , नक्षत्र न्यास, महाषोढ़ा न्यास 

क्रम एवं चक्र

ब्रह्मांड में सब परिवर्तनशील है अनंत तथा अनादि केवल ईश्वरीय सत्ता है

बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक सब कुछ बदलता रहता है  बाल गिरते रहते हैं फिर नये आते हैं ऐसा पूरे शरीर के साथ है वरन पूरे ब्रह्मांड के साथ है 
यह परिवर्तन सतत है नया होना सृष्टि है और पुराना समाप्त होना लय इन दोनों का एक साथ सतत होते रहना स्थिति है 

स्थिति
लय 
सृष्टि





कर ह्रद ऋषि मात्रका 
षोढ़ा 
चक्र 
स्थिति लय सृष्टि 
राशि गृह नक्षत्र 
जगत्वशीकरण सम्मोहन वाग्न्यास 
आम्नाय दृष्टि 
मुण्ड 
पीठ 
तत्व 
तत्व; प्राण ; नाड़ी; कारण; देवता 
सूर्य  द्वादश कला चन्द्र षोडश कला  अग्नि दश  कला 
काली न्यास 
अन्यान्य देवी देवता न्यास 
रुद्र न्यास 
अ आ अ आ इ आ इ ई इ ई उ ई आदि 

एक माल ऐसी भी जपें के

साँस लें तो राम छोड़ें तो हनुमान