Thursday, August 3, 2017

सूर्य और चन्द्र दोनों प्रकृति में हमारे समय का मापदण्ड तय करते हैं

सूर्य और चन्द्र दोनों प्रकृति में हमारे समय का मापदण्ड तय करते हैं। 
सूर्य से हम वर्ष की गणना करते हैं। यह वर्ष के ऋतुओं की भी गणना करता है। 
चन्द्र से दिन (तिथि ) की और पखवाडे तथा मास की गणना करते हैं। 
समय को काल भी कहा जाता है। तो यदि हमें काल को समझना है तो सूर्य और चन्द्र को और इनकी गति को ध्यान में लाना आवश्यक है। 
यदि ध्यान किया जाए तो पता चलता है कि हम एक समय मेें एक ही नासाद्वार से श्वास लेते हैं। इसे हम स्वर कहते हैं। दाहिने नासाद्वार के श्वास को सूर्य स्वर और बाँई नाक के श्वास को चन्द्र स्वर कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य स्वर सूर्य से तथा चन्द्र स्वर चन्द्र से संचालित होता है। शरीर के तापमान और उससे शरीर में  होने वाले परिवर्तन इन्हीं दोनों सूर्य और चन्द्र से संचालित होते हैं।  
सूर्य ऊष्मा को बढाता है चन्द्र शीतलता को बढाता है। इस ऊष्मा के आवागमन और उसकी गति को नियन्त्रित किया जा सकता है। 
इसे स्वर साधना कहते हैं। 
पहला चरण
इस साधना का पहला चरण है सूर्य का अनुभव . प्रतिदिन आपको सूर्य की गति का ध्यान करना है। प्रारम्भ के लिए आप सूर्योदय सूर्यास्त और मध्यान्न के समय को ध्यान में लाना शुरू करें। कुछ दिनों के अभ्यास से आप पाएंगे कि आप बिना घड़ी देखे इनका सही समय बता सकते हैं। दिन के पूर्ण काल का भी अनुभव करने लगेंगे। दिन के पूर्ण काल को चार भागों में बाँटना शुरू करें । आप पाएँगे कि शुरू में यह विभाजन प्रतिदन थोड़ा थोड़ा बदल जाता है। यह सूर्य की गति के वर्तमान परिवर्तन हैं। इसे थोड़े से अभ्यास से साधा जा सकता है। 
दूसरा चरण

दूसरे चरण में आप को अपने श्वास का भी साथ साथ ध्यान करना है। इसे नोट करें कि आप का दाहिना स्वर कब , कितनी देर और कितना लम्बा चलता है। 
लम्बे से अर्थ है कि श्वास की लम्बाई कितनी रहती है। जब आप जल्दी में रहते हैं आप का श्वास भी जल्दी में रहता है। यदि आप ज्यादातर छाती तक श्वास लेते हैं , तब यह श्रम करते समय इससे कम हो जाता है। उथला हो जाता है। यानि आप श्रम करते समय छाती से ऊपर ही श्वास को वापस भेज देते हैं। 
सामान्य परिस्थितियों में यदि इसे रोज किया जाए तो आप को एक क्रम दिखेगा। इस क्रम को नोट करें। आप पाऐंगे कि स्वर कुछ समय में बदल जाता है। याने दाहिने की जगह बाँए स्वर से चलने लगता है। 
इससे आप को पता चलता है कि सूर्य स्वर और आप का शरीर आपस में तादात्म्य कैसे स्थापित कर रहा है। 

इसे नियन्त्रित किया जा सकता है।  शरीर की प्रकृति को बाह्य प्रकृति से निरन्तरता से जोड़े जाने की विधि है। 

तीसरा चरण 

तीसरे चरण में यही विधि चन्द्र के लिए अपनाई जाती है। रात भर जागने की जरूरत नहीं है। केवल चन्द्र का समय और चन्द्र की कला का ध्यान रखना है। तथा चन्द्र स्वर की गति को नोट करना है। 

चौथा चरण 

एक सम्पूर्ण मास तक ऊपरी चरणों का अभ्यास करने के बाद , आपको एक रोजनामचा बनाना है । अपनी प्रतिदिन कार्यों की  लिस्ट सारणी । आगे ध्याना है कि किस गतिविधि में स्वरों का क्या परिवर्तन होता है। 

शेष.... 

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