तारा
षोडशी
भुवनेश्वरी
भैरवी
छिन्नमस्ता
धूमावती
बगलामुखी
मातंगी
कमला लक्ष्मी का स्वरूप है
ये सभी विद्याएं सृष्टि के गूढ़ से गूढ़ रहस्यों को उजागर करती हैं। इन सभी में गुरू का होना आवश्यक इसलिए माना जाता है क्योंकि ये सभी ऐसे अनुभव लेकर आती हैं जो सामान्य से बिल्कुल अलग होते हैं और आपको पता नहीं होता कि इन सबसे कैसे प्रतिसाद किया जाए ।
जैसे एक अबोध बालक को नहीं पता होता कि आग को छूने के नुकसान या तो वह चटखे से पता चलता है या मां से । एक बार पता चलने पर आपको पता है कि कब कैसे करना है।
पूरे ब्रह्मांड का परिसंचलन इनसे होता है । ये तन्त्र हैं । ये तत्व हैं।
काली संहार भैरवी सतत संहार कमला नवीन सृष्टि
हम केवल कल्पना करतें हैं कि हम सब कुछ करते हैं पर सब कुछ किसी तन्त्र से संचालित ही है। जैसे मानव मानव को ही जन सकता है। श्वास की गति भी हमारे नियन्त्रण में नहीं है। पर तन्त्र तो है। यही तन्त्र है।
ऐसा कहा जाता है कि 64 तन्त्रों से दुनिया चलती है । प्रत्येक महाविद्या इन्ही में से कुछ तन्त्रों का समूह हैं। ये सभी परा हैं यानि केवल इन्द्रियों से ज्ञाप्त नहीं हैं। इन्द्रियों के शोषित से कारिका देते हैं पर ये तिनके के सहारे जितने ही होते हैं।
जैसे सूर्य का हमें भान होता है प्रकाश का भान होता है पर यह पर क्यों और क्या क्या प्रभाव शरीर पर डालते हैं हमें नहीं पता ।
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