प्राणायाम श्वास का प्रबन्धन है।
प्राणों के आयाम को समझने के लिए किया जाता है।
एक श्वास के कई विभाग किये जा सकते हैं
रेचक - श्वास को बाहर निकालना
पूरक - श्वास को भीतर लेना
कुम्भक - श्वास को जहां है वहीें पर रोक देना
अन्तर कुम्भक शरीर के अन्दर रोकना
बाह्य कुम्भक शरीर के बाहर रोकना
इसके अलावा दो बिन्दु लिए जा सकते हैं , जहां से श्वास पलटता है।
तीसरा श्वास की गति
चौथा श्वास नलिका का सन्चलन
पांचवा श्वास का शरीर में प्रवाह
प्राण वायु के विभाग
प्राण जब भीतर जाता है तो केवल फेफड़े तक नहीं जाता वरन शरीर के सभी अंगों तक जाता है ।
इसके मुख्य विभाग इस तरह हैं
प्राण - जिसमें प्राण वायु के साथ शरीर में जाता है।
अपान -जिसमें प्राण शरीर में और वायु शरीर से बाहर जाता है।
व्यान- जिसमें प्राण शरीर के अंगों में व्याप्त होता है गति करता है।
उदान -जिसमें प्राण विभिन्न अंगों में क्रिया करता है।
समान- प्राण शरीर से वापस आता है।
तो प्राणायाम केवल श्वास लेने की क्रिया नहीं है।
सम्पूर्ण शरीर के सन्चलन की प्रक्रिया को नियन्त्रण करने की विधि है।
इनका अनुभव करने के लिए सरल अभ्यास हैं ।
1. श्वास लें और भीतर रोक लें । शरीर को पूर्ण शिथिल कर दें अब आपको वायु की शरीर में गति पता चलने लगेगी। श्वास कैसे अंगोें तक जाता है।
2. श्वास छोडें और बाहर रोक लें । शरीर को पूर्ण शिथिल कर दें अब आपको वायु की शरीर में गति पता चलने लगेगी। श्वास कैसे अंगोें से वापस आता है।
3. श्वास को चलते रहने दें । अब पहले दुसरे अभ्यास को श्वास को चलते रहने पर प्राण की गति देखें ।
4. श्वास के साथ ह्रदय की गति का क्या सम्बन्ध हो रहा है, इस पर ध्यान लगाएँ । इसी तरह पल्स यानि जीवनी नाड़ी का भी सम्बन्ध स्थापित करें। किसी भी प्राणायाम से यह सम्बन्ध किस तरह बदल रहा है, यह पता करने का साधन मिलेगा।
आपको पता चलेगा कि एक श्वास कितने आवर्तन में प्राण को वापस लाता है।
प्राणायाम के किसी भी अभ्यास से पहले यह आवश्यक है कि हम अपने प्राण की गति और उसका शरीर में अनुभव ठीक से करें। इसी से आप सीधे पता लगा पाते हैं कि प्राणायाम करने क्या फल मिल रहा है। और किसी भी प्राणायाम से शरीर में क्या फेरबदल , उलट-पलट हो रहा है यह भी। यानि वह बिन्दु स्थापित करना है जहाँ से हम नापना शुरु करेंगे।
प्राण को धक्के से या धीरे धीरे लिया जा सकता है।
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