Monday, July 31, 2017

वाङग्मय के चार तल होते हैं

वाङग्मय के चार तल होते हैं. इन्हें वाकपद कहते हैं.

प्रथम तल वैखरी है. बाहरी विश्व से संवाद . आम भाषा में जोर से बोलना. इस संवाद को दूसरे सुन सकते हैं.

दूसरा तल मध्यमा है.  स्वयं से संवाद . जिसे हम सोचना कहते हैं.  

तीसरा तल पश्यन्ति है. यह वह तल है जिसे हम मन का दृश्य-पटल भी कह सकते हैं. जिसमें संवाद नहीं होता दर्शन होता है. इसका आधा भाग स्थूल और आधा भाग सूक्ष्म होता है.


चौथा तल परा है. व्यष्टि और समष्टि के बीच का तल परा है. बिना साधना के इस तल का अनुभव नहीं होता , इसलिए इसका नाम परा है. ये वह बुद्ध की मुद्रा है जिसमें हम हमेशा उन्हे बैठे हुए देखते हैं. अर्ध-निमेष आँखें . तो मैं विश्व को होते हुए देखता हुँ लेकिन मैं इसमें नहीं हुँ. और मैं अन्तर्जग को भी देखता हुँ. लेकिन मैं इसमें भी नहीं हुँ. शिव-पार्वती की एक साथ आमोद मुद्रा की तस्वीर में भी पार्वती इसी अर्ध-निमेष को इंगित करती हैं.

ये पाश्चात्य विज्ञान के विभाजन  Conscious , sub-conscious and unconscious से बिल्कुल अलग दृष्टि है. क्योंकि इस दृष्टि से ही आपको आलंब को व्यवस्था करने का धरातल मिलता है . एक प्रोग्रेशन है , एक रास्ता है, क्रम है जिसमें एक आलंब की स्थिति स्पष्ट है कि मैं कहाँ हुँ.  तो आपको पता चलता है कि कहाँ से शुरु करना है.



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