हम अपने आप को अपने शरीर में एक बिंदु पर रखते हैं या समझिए कि शरीर में स्वयं को एक खास जगह पाते और मानते हैं । यहीं से हम पूरी सृष्टि को देखते हैं। यही आलम्ब हैं।
न्यास की विधियां शरीर या शरीर के बाहर विशेष स्थानों पर आलम्ब की सृष्टि करने और इसी का अभ्यास करने का अवसर देती हैं।
न्यास हमें रुद्र , विष्णु, ब्रह्म ( योग सूत्र ) ग्रन्थियों से जगत को देखने का अभ्यास कराता है। हमारे स्वयं के विश्व मे्ं तीन अलग -अलग जगत होते हैं। एक स्थूल शरीर की सृष्टि एक भावनाओं यानि इन्द्रिय जनित सृष्टि और एक शुद्ध ज्ञान की सृष्टि ( ईश्वर सत्ता का ज्ञान)
विभिन्न न्यासों को करने के पहले प्रत्येक को कुछ रोचक अभ्यास अवश्य करना चाहिए।
पहला अभ्यास शरीर में ढूंढिेए कि मैं क्या हूं और कहां हुं। क्या मैं शरीर ही बस हुं , क्या मन से मन का सम्वाद कल रहा है वो हुं या या स्वचलित यंत्र । कुछ दिनों के अभ्यास से आपको खुद के बारे में नई जानकारियां मिलेंगी।
दूसरा अभ्यास पता किया जाए कि हम कब दांई आंख से ( फोकस) देखते हैं कब वाम अक्षि से इसी तरह नाक , कान आदि
कुछ दिनों के अभ्यास से पता चलेगा कि इसमें एक विशेष क्रम है। जैसे सूर्य का एक चलन है दक्षिणायण उत्तरायण पूर्व पश्चिम आदि एक क्रम है चन्द्र का एक विशेष क्रम है वैसे इन का भी क्रम है । इसे जानने से उसी शरीर में नई सृष्टि दिखेगी। ये दृष्टि विकसित होने से ही न्यास के फायदे हैं और आपको पता रहेगा कि आप क्या प्रयोग कर रहे हैं और क्यों।
तीसरा अभ्यास हमारे शरीर में गति , ऊर्जा तथा विचारों का मूल क्या और कहां है। इनका केंद्र बिन्दु एक है या कई हैं किसका कहां है। यह अभ्यास आपको एक नया दृष्टिकोण देगा। शरीर और मन को साधना सरल करेगा।
चौथा अभ्यास पता कीजिए कि शरीर का सन्तुलन कैसा है एक पैर पर कब तक खड़े रह सकते हैं , क्या पैरों की तरह हाथों पर खड़े रह सकते हैं , क्या सिर के बल खड़े रह सकते हैं इत्यादि कुछ भी जो आपको सन्तुलन का संघर्ष पैदा करे, तब यह देखें कि क्या अब भी आलम्ब वही है यदि बदला है तो क्या और क्यों ।
अब न्यास की तरफ बढते हैं
शरीर के अंगों की गिनती कीजिए एक ही क्म से कई बार । करते समय उस अंग पर ध्यान लगाईए उस के हालचाल लीजिए क्या दर्द है कोई नाड़ी सुनाई दे रही है क्या कोई कमजोरी है इत्यादि । छोटेि मोटेि व्याधियां केवल इतना करते रहने से ही ठीक हो जाती हैं। कुछ एक बार में ही ठीक हो जाएंगी कुछ थोड़ा समय लेंगी।
बस ध्यान देने से।
और प्रयोग करना है तो शरीर के अंग को पूर्ण शिथिल होने का आदेश दीजिए जब तक आप बाकी शरीर से घूम कर नहीं आते।
अगला अभ्यास हमारे कई अंग जो़ड़े से हैं जैसे बायां हाथ दायां हाथ , पैर, आंखें , कान इत्यादि पहले दांया फिर बांया फिर अगला जोड़ा क्रिस क्रास । यह अभ्यास कई विकृतियों को ठीक करता है जो शरीर की प्रकृति से पैदा होती हैं। जैसे हम दांए या बांए हाथ से ही लिखते हैं , एक तरफ से चबाते हैं बांई करवट ज्यादा सोते हैं इत्यादि, यह सभी का व्यक्तिगत अलग होता है । यह अभ्म्यास साम्य लाता है, सन्तुलन लाता है और कई विकारों को ठीक करता है।
इन अभ्यासों को कुछ दिनों तक करने के बाद आपको पूर्वाभास हो जायगा कि न्यास क्यों
अब कैसे पर आते हैं सामान्य न्यास अनेक प्रकार से विभाजित किए जा सकते हैं
अन्तर्जगत तथा बहिर्जगत
अन्तर्जगत यानि शरीर में जैसे कर न्यास , षडंग न्यास रुद्र न्यास
बहिर्जगत यानि सृष्टि में जैसे तत्व न्यास , षोढ़ा न्यास , नक्षत्र न्यास, महाषोढ़ा न्यास
क्रम एवं चक्र
ब्रह्मांड में सब परिवर्तनशील है अनंत तथा अनादि केवल ईश्वरीय सत्ता है
बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक सब कुछ बदलता रहता है बाल गिरते रहते हैं फिर नये आते हैं ऐसा पूरे शरीर के साथ है वरन पूरे ब्रह्मांड के साथ है
यह परिवर्तन सतत है नया होना सृष्टि है और पुराना समाप्त होना लय इन दोनों का एक साथ सतत होते रहना स्थिति है
स्थिति
लय
सृष्टि
कर ह्रद ऋषि मात्रका
षोढ़ा
चक्र
स्थिति लय सृष्टि
राशि गृह नक्षत्र
जगत्वशीकरण सम्मोहन वाग्न्यास
आम्नाय दृष्टि
मुण्ड
पीठ
तत्व
तत्व; प्राण ; नाड़ी; कारण; देवता
सूर्य द्वादश कला चन्द्र षोडश कला अग्नि दश कला
काली न्यास
अन्यान्य देवी देवता न्यास
रुद्र न्यास
अ आ अ आ इ आ इ ई इ ई उ ई आदि